पीरियड्स आने पर शर्मिंदगी महसूस करती थी Jaya Bachchan? नव्या नवेली के साथ साझा किया चौंकाने वाला एक्सपीरियंस

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बदलते समय के साथ लोगों की मानसिकता ओं में भी काफी ज्यादा बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले महिलाओं के आने वाले पीरियड्स को काफी नेगेटिव तरीके से देखा जाता था। लेकिन आज लोगों में काफी ज्यादा जागरूकता आ चुकी है और वहां इस चीज को बहुत अच्छे से समझते हैं कि यह एक नेचुरल प्रोसेस है जिससे हर महिला को गुजरना पड़ता है। ज्यादातर लोग आज भी पीरियड्स को लेकर साफ तौर पर बातें करना पसंद नहीं करते हैं।

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Jaya Bachchan Navya Naveli Nanda

पीरियड्स पर क्या बोलीं श्वेता और जया बच्चन?

लेकिन हाल ही में बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री जया बच्चन ने अपने पीरियड्स एक्सपीरियंस को साझा करते हुए उनके समय की बातों को और पीरियड्स के समय शूटिंग करने में आने वाली समस्याओं को लेकर नव्या नवेली से काफी सारी बातें शेयर की है। बता दें कि नव्या नवेली नंदा अपने पोडकास्ट What the Hell Navya को लेकर लंबे समय से लगातार चर्चाओं का विषय बनी हुई है। इसके माध्यम से कई पर्सनल बातें सामने आई है।

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इतना ही नहीं जया बच्चन ने भी इस दौरान कई अपने जीवन से जुड़ी ऐसी पर्सनल बातों को साझा किया है। जिसे कोई भी नहीं जानता ऐसे में इस बार इसका टॉपिक पीरियड्स पर था। जया बच्चन ने अपने समय की जानकारी को साझा करते हुए बताया कि शूटिंग के समय किस तरह होने समस्याओं का सामना करना पड़ता था। क्योंकि जिस समय वह फिल्मों में काम करती थी। उस समय इतनी ज्यादा सुविधाएं सेट पर मौजूद नहीं हुआ करती थी।

प्लास्टिक बैग में रखने होते थे सैनिटी टॉपल

जया बच्चन ने बताया कि शूटिंग के समय यदि पेट पर पीरियड्स आ जाते थे तो काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। क्योंकि आज के समय में हर एक कलाकार के पास अपनी खुद की पर्सनल वैनिटी वैन देखने को मिलती है। लेकिन पहले या नहीं हुआ करती थी इस वजह से पेड़ को चेंज करने के लिए बार-बार एकांत जगाया फिर झाड़ियों के पीछे जाना पड़ता था जो कि काफी शर्मिंदगी भरा एहसास हुआ करता था।

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अदाकारा ने आगे बताया कि आज के समय में सैनेटरी पैड मिल जाते हैं। लेकिन उनके जमाने में सैनिटरी टॉवल का इस्तेमाल किया जाता था। ऐसे में लंबे समय तक शूटिंग करना और बाद बार उठना और बैठना इसमें काफी समस्या हुआ करती थी। इतना ही नहीं इस सैनिटरी टॉवल को हर कहीं पे का भी नहीं जा सकता था ऐसे में इन्हें एक प्लास्टिक की पन्नी में अपने पास ही बैग में रखना पड़ता था और फिर कहीं एकांत जगह देखकर इन्हें फेंका जाता था। उस दौर का एक्सपीरियंस आज भी सोचने पर मजबूर कर देता है।


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