फिल्मों में बाबूजी के नाम से मशहूर आलोक नाथ ने अपने कैरियर की शुरुआत ही महान फिल्म मेकर रिचर्ड एटनब बर्ग की गांधी जी से की थी। इस फिल्म में उनको बापू का रोल नहीं मिला था। इसके बाद उन्होंने कसम खा ली थी कि वह ताउम्र बापू के ही रोल करेंगे। इतिहास गवाह है कि उन्होंने सारे सीरियल्स और फिल्मों में सिर्फ बापूजी का ही रोल किया। वह भी यह दिखाने के लिए कि हमें क्या नहीं करना चाहिए।
ये हमारे संस्कारों के खिलाफ है
धर्म और संस्कारों की रक्षा के लिए उन्होंने गांधी जी के आदर्शों के खिलाफ मारपीट भी की, इस बार उन्होंने गांधी नहीं गीता की बात मानी थी। गीता यानी भगवत गीता कुछ और मत सोचो। जिस फिल्म रिचर्ड एटनबर्ग में अभिनय किया उसको कई अवार्ड मिले थे। इस फिल्म में आलोक नाथ ने कुछ मिनटों का रोल किया था। आलोक के अनुसार जब मैंने दिल्ली में हिंदू कॉलेज जॉइन किया था, उस समय मैं कॉलेज थिएटर में काफी एक्टिव था। कॉलेज के बाद मैंने एनएसडी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा को ज्वाइन किया। वहां मैंने 3 साल व्यतीत किए ,मैं छुट्टियों में भी टीवी और सीरियल्स करता था।
उसी समय उनकी मुलाकात डोली ठाकरे से हुई जो फिल्म रिचर्ड एटन बर्ग की फिल्म गांधी के लिए कुछ कलाकार की तलाश में थी। हमें कहा गया कि हम नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं, रिचर्ड एटनबर्ग ने आलोक नाथ को ऊपर से नीचे तक देखा जैसे घोड़ा खरीदने आए हो। आलोक अंदर ही अंदर परेशान हुए जा रहे थे क्योंकि रिचर्ड की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। कुछ समय पश्चात डाली ठाकरे ने कहा कि तुम्हें साइन कर दिया गया है। आलोक तुम्हारे कैरेक्टर का नाम तैयब मोहम्मद होगा तुम गांधी के एक सहायक होंगे और कितना चार्ज करेंगे।
रोंगटे खड़े कर देने वाला समय
उस समय किसी करैक्टर को प्ले करने के 10 दिन के 60 रुपए मिलते थे। आलोक को समझ नहीं आया कि मैंने कोई फिल्म में काम नहीं किया है मुझे सिर्फ ₹60 मिलते हैं। आप मुझे ₹100 दे देना डोली ने मुझे शांत देखकर कहा चलो 20 रुपए फाइनल करते हैं ओके। मैं सकते में आ गया क्योंकि थिएटर में ₹60 और हॉलीवुड फिल्म के लिए महज ₹20 ही हैरानी हुई, लेकिन जब उन्होंने कहा 20000 में डील पक्की करते हैं और यह रहा आपका एडवांस। तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, मैं समझ नहीं पाया कि कुछ मिनट के रोल के मुझे ₹20000 मिलेंगे।
जो एडवांस मिला उसे मैं गौर से देख रहा था क्योंकि मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वास्तव में असली नोट है। प्रथम बार मैंने बस की जगह ऑटो रिक्शा में यात्रा की पैसों को जब घर वालों को दिया, तो मां ने कहा बेटा अच्छा रहा तू अपने पिता की तरह डॉक्टर नहीं बना क्योंकि उन्हें तो 1 साल में ₹10000 भी नहीं मिलते थे। मेरे लिए वह समय काफी हैरानी भरा था।
इसे भी पढ़े : –
- महात्मा गाँधी का कोलकाता का घर जो संग्रहालय बनने जा रहा है उद्घाटन २ अक्टूबर को
- अब प्लास्टिक नहीं बांस की बोतल ही होगी उपलब्ध, जाने विशेषता और कीमत
- विदिशा मैत्रा: जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को धो डाला, दिया इमरान को करारा जवाब