राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ही मुस्लिम संगठन और उसके नेता सवाल उठा रहे हैं। इसमें जमीयत-उलेमा-ए-हिंद-ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड और एआईएमआईएम प्रमुख तथा हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी प्रमुख हैं। जमीयत ने एक बार फिर कहा कि सुप्रीम कोर्ट को मुसलमानों की बजाय हिंदूओं को मंदिर बनाने के लिए अलग जगह देनी चाहिए थी।
मौलाना मदनी ने कहा है, “कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सभी सबूत बाईं ओर इशारा करते हैं। जबकि फैसला दाईं और जाता है। कोर्ट ने 1992 में मस्जिद के विध्वंस को गैरकानूनी करार दिया। लेकिन फैसले में जमीन उन लोगों को दे दी जिन्होंने मस्जिद तोड़ी थी। कोर्ट यह स्वीकार करता है कि मुसलमानों ने 1857 से 1949 तक वहां नमाज अदा की थी। इस बात को माना गया कि 1934 में मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया और इसके लिए हिंदुओं पर जुर्माना भी लगाया गया। 1949 में वहां मूर्तियों की स्थापना गलत थी। 1992 में मस्जिद के विध्वंस को गैरकानूनी करार दिया”। मदनी ने कहा कि कोर्ट ने यह भी नहीं कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। लेकिन फैसले में जमीन उन लोगों को दे दी गई जिन्होंने मस्जिद तोड़ी थी।
मदनी ने भ्रामक और झूठे तर्क देकर यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का दुरुपयोग किया है। इसके साथ ही मौलाना ने कहा कि वह अपनी समीक्षा याचिका में तर्क दे रहे हैं कि वैकल्पिक भूमि हिंदुओं को दी जाय। मदनी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुसलमानों को दी गई 5 एकड़ जमीन को भी खारिज कर दिया था। पहले मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि के 67 एकड़ जमीन के भीतर चाहिए थी।अब उनकी यह मांग हिंदुओं को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने पर स्थानांतरित हो गई है। एक बार एक मस्जिद का निर्माण हो जाने के बाद वह हमेशा एक मस्जिद ही रहती है। बीते दिनों जमीयत के प्रमुख अशरद मदनी ने कहा था कि उन्हें मालूम है कि समीक्षा याचिका खारिज हो जाएगी इसके बावजूद वे इसे दाखिल करेंगे।
अदालत ने विवादित जमीन रामलला को सोंपते हुए मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को 3 महीने में ट्रस्ट निर्माण का आदेश दिया था।साथ ही मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। सब को ज्ञातव्य है कि दशकों पुराने इस विवाद का निपटारा करते हुए 9 नवंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। ज्यादातर तबकों ने इस फैसले का स्वागत किया था।बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी भी इनमें है। लेकिन ओवैसी ने फैसले के बाद कहा कि मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन नहीं चाहिए। जमीयत और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है। गौरतलब है कि जमीयत वही मुस्लिम संगठन है जिसने हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी के हत्यारों की मदद की थी। हिंदू समाजवादी पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की 18 अक्टूबर को निर्मम हत्या कर दी गई थी।