नई दिल्ली। चीन के वुहान में हुए मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स में भारत के वीर जांबाज़ ने विश्वभर में भारत का मान बढ़ाया है, जांबजों की तरह शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत के लिए मेडल जीतने वालों में 32 साल के आनंदन गुनासेकरन (Anandan Gunasekaran) भी शामिल है। देश व दुनिया मे भारत का परचम लहराने वाले आनंद ने अपने देश के लिए तीन गोल्ड मेडल लेकर दुनिया मे भारत का मान बढ़ाया है। वही ब्लेड रनर आनंदन देश के लिए अपना एक पैर गवा चुके हैं, फिर भी उनके हौसलों के मीनार देश के किये कुछ कर गुजारने के लिए तत्तपर थे, बावजूद इसके अब पैराओलिंपिक्स (Paraolympics) में देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद आनंदन (Anandan Gunasekaran) ने वुहान में 100मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर में देश का मान बढ़ाते हुए गोल्ड मेडल जीतकर अपने हौसलों का परिचय दिया है। जिसमे 100 मीटर में मात्र 12.00 सेकंड का समय लेकर टूर्नामेंट में देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाया है।
2008 के बम बलास्ट में गवाना पड़ा अपना एक पैर
गुनासेकरन साल 2005 में भारतीय सेना से जुड़े। वही उन्होंने रनिंग करना साल 2008 में हुए हादसे के बाद से शुरू की। जानकारी के अनुसार साल 2008 के जून में जम्मू और कश्मीर के कुपवारा जिले के नाउगाम इलाके में बम बलास्ट होने से गुनासेकरन अपना पैर गवा बैठे थे।हादसे को याद करते हुए गुनासेकरन ने बताया, ‘उस दिन हम एलओसी पर वायर चेकिंग कर रहे थे। उस दौरान मेरे तीन साथी मुझसे आगे निकल गए तभी मेरा पैर लैंडमाइन पर पड़ गया। हालाकी वह इलाका माइन फील्ड नहीं था फिर भी शायद मेरी किसमत खराब थी।
आनंदन गुनासेकरन का मनोबल इतना ऊँचा कि,जिसके दम पर हासिल किए 3 गोल्ड मेडल
बलास्ट के बाद उन्हें श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती किया गया जहां से उन्हें पुणे भेज दिया गया। पुणे अस्पताल में उनका ऑपरेशन हुआ और फिर पैर के घुटने से नीचे का हिस्सा काट दिया गया। गुनासेकरन ने बताया कि अगले छह महीने तक उनके परिवार को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी। उनके घर पहुंचने के बाद पता चला, जिस वजह से उनकी मां दोबारा ड्यूटी जॉइन करने के खिलाफ थी। लेकिन गुनासेकरन घर से भाग गए और ड्यूटी जॉइन की। यही हौसलों की लड़ाई में आनदंन को आज देश का नाम रोशन करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।
हौसलों की उड़ान जिससे देश का नाम हुआ रोशन
हादसे के बाद उनकी दिलचस्पी पैराओलिंपिक खेलों की ओर बढ़ने से उन्होंने रनिंग शुरू की। साल 2012 में उन्होंने लकड़ी के प्रोसथेटिक लेग से 2.5 किमी का रास्ता 9.58 मिनट में पूरा किया। इसी वक्त उन्होंने कमांडर से प्रोसथेटिक ब्लेड की डिमांड करते हुए साल 2014 मे वो ब्लेड भी हाशिल कर लिया। बस यही से उनके एथलेटिक के सफर की शुरुआत हुई। उन्होंने साल 2014 में पैराओलिंपिक ग्रैंड प्रिक्स में तीन मेडल जीतकर अपना व अपने देश का नाम रोशन किया।
इसके बाद से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। अपने सफर पर गुनासेकरन का कहना है कि, ‘हर इंसान के लिए जरूरी है कि वह कभी मुश्किल हालातों में हिम्मत नहीं हारे।जिंदगी में मेरा लक्ष्य है कि जब भी मैं गिरुं खुद को संभालूं और फिर खड़ा होकर दौड़ना शुरू करूं। इसी हौसले ने उनको इस योग्य बनाया है। जिससे वह देश भर में खुद का व देश का नाम रोशन कर रहे है।