NCP ने जहां शिवसेना को समर्थन देने के लिए NDA का साथ छोड़ने को कहा, वहीं कांग्रेस ने शिवसेना से अपनी हिंदुत्ववादी छवि को बदलने की शर्त रख दी। शिवसेना ने अपने कट्टर हिंदुत्व छवि को त्यागने के बाद से ही लोगों के जेहन में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर वह कौन सी कड़ी रही होगी, जिसने शिवसेना और कांग्रेस के बीच के वैचारिक मतभेद की खाई को भरी होगी। ऐसे में संभवतः एक नाम उभरकर सामने आता है वह नाम है, मराठा क्षेत्र के सिलोद से पूर्व पशुपालन मंत्री अब्दुल सत्तार। सत्तार ने औरंगाबाद से टिकट नहीं मिलने पर लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस छोड़कर शिवसेना का दामन थाम लिया था। वह उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए थे। सत्तार ने अलग विचारधारा वाली शिवसेना, कांग्रेस और NCP और महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए सबको साथ लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
मराठा क्षेत्र के सिलोद से हिंदुत्व की बुनियाद पर खड़ी शिवसेना के टिकट पर पहली बार कोई मुस्लिम चेहरा चुनाव जीत विधानसभा पहुंचा। शिवसेना की हिंदुत्ववादी छवि को त्यागने और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के पीछे सत्तार की भूमिका मानी जा रही है। इसलिए क्योंकि अब्दुल सत्तार कांग्रेसी रह चुके हैं उनकी विचारधारा कांग्रेस से मेल खाती है। बता दें, कि उन्होंने किसी तरह की वैचारिक मतभेद की वजह से पार्टी नहीं छोड़ी थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी इसलिए छोड़ी थी क्योंकि पार्टी ने उन्हें औरंगाबाद से लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया था। सत्तार कांग्रेसी रह चुके हैं। तो जाहिर सी बात है कि उनके कांग्रेसी नेताओं के साथ भी अच्छे रिश्ते रहे होंगे।
जानकारी के अनुसार, कांग्रेस पार्टी के ऐसे नेता जो शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए चाह रखते हैं। उन्होंने सत्तार के मामले को सामने रखते हुए कहा कि कांग्रेस पिछले कुछ साल में ऐसी ही सियासी गलतियां करती रही है। जिसका बाद में खामियाजा भुगतना पड़ा है। ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अब्दुल सत्तार ने ही शिवसेना और कांग्रेस के बीच वैचारिक खाई को पाटने का काम किया होगा। वहीं एक अन्य कांग्रेस नेता शिवसेना में शामिल होता है और अल्पसंख्यक बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र में आसानी से जीत जाता है। इससे साफ पता चलता है कि राजनीति में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं। महाराष्ट्र की स्थिति पर कुछ भी कहना संभव नहीं है। अभी भी तीनों पार्टियों शिवसेना NCP और कांग्रेस के बीच का मतभेद और संशय खत्म नहीं हो रहा है। ऐसे में अगर सरकार बन भी जाती है तो देखना दिलचस्प होगा कि अब तीनों के बीच अभी भी वस्तु स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है तो फिर सरकार कैसे चलेगी।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवसेना को सरकार बनाने का दावा करने के लिए उस दिन (11 नवंबर) को 7:30 बजे तक का समय मांगा था। लेकिन उसका समर्थन करने पर कांग्रेस के वरिष्ठ और युवा नेताओं के विचारों में मतभेद स्पष्ट दिखाई दे रहा था। राज्यपाल की ओर से दिया गया समय समाप्त होने में ज्यादा देर नहीं बची थी। लेकिन इस मामले में कांग्रेस का अंदरूनी गतिरोध खत्म होने में नहीं आ रहा था। सरकार बनाने की इच्छा रखने वाले नेता पार्टी में हावी हो गए हैं। पार्टी में सरकार बनाने को लेकर चर्चा तेज हो गई है यह सब एक व्यक्ति का उदाहरण देकर किया गया था।