इंडोनेशिया के जावा द्वीप के शहर योग्याकार्ता के सुल्तान के व्यक्तित्व को सियासी और रूहानी रूप से ताक़तवर माना जाता है.
जब उन्होंने अपनी बड़ी बेटी को अपना जानशीन बनाने की कोशिश की तो वहां झगड़े शुरू हो गए.
इंडोनेशिया की संपादक रिबेका हिंस्के ने महल का दौरा कर इस बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की. पढ़िए क्या बताती हैं रिबेका हिंस्के-
योग्याकार्ता में नस्ल दर नस्ल आने वाले सुल्तानों ने समय के साथ-साथ आ रहे बदलावों को स्वीकार करते रहे हैं. ये कहना था वीडोनो बीमो गूरीत्नो का जो मुझे महल घुमा रहे थे.
वो शाही दरबार के लगभग 1500 सदस्यों में से एक हैं. उनके सरोंग (इंडोनेशिया का पारंपरिक पहनावा) में जावा में पवित्र माना जाने वाला खंजर है जिसे यहां केरीस कहा जाता है.
गूरीत्नो कहते हैं, “पहले राजकुमार चुनना मुश्किल नहीं होता था, क्योंकि सुल्तान की एक से अधिक पत्नियां होती थीं.”
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हम बात करते-करते सुल्तान के निजी निवास में पहुंच गए. चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ बीमो गुरीत्नो कहते हैं, “लेकिन जावा के परिवारों में असल ताक़त हमेशा से महिलाओं के हाथों में ही रही है.”
राजमहल में दाख़िल होने से पहले पारंपरिक पोशाक पहनना अनिवार्य है. मुझे भी पारंपरिक कपड़े पहनाए गए और तैयार किया गया.
मैंने बटीक सरोंग पहना है जो काफ़ी तंग है, इसके साथ मैंने रेशम का काला ब्लाउज़ पहना है, जिसे केबाया कहा जाता है. मेरे बालों को कसकर जूड़ा बना दिया गया.
जावा की संस्कृति में संकेत
जावा की संस्कृति में चीज़ों को सीधे नहीं कहा जाता है बल्कि संकेतों में व्यक्त किया जाता है.
72 वर्षीय सुल्तान ने हाल ही में अपनी उपाधि बदली है और अपनी सबसे बड़ी बेटी को नया नाम दिया है- गुस्ती कांजेंग रातु मांगकुबूमी जिसके मायने हैं ‘वो जो धरती को थामे हुए है.’
ये इस बात का संकेत था कि समय आने पर उन्हें राजगद्दी संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है.
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जब मैंने राजकुमारी से कहा कि उनका नाम बहुत ज़िम्मेदारी भरा है तो वो मुस्कुराने लगीं. वो कहती हैं, “जैसा सभी परिवारों में होता है, मैं सबसे बड़ी हूं तो मेरी ज़िम्मेदारी भी ज़्यादा है. लेकिन भविष्य में क्या होना है, ये फ़ैसला तो मेरे पिता को ही लेना है.”
उत्तराधिकार के बारे में वो सार्वजनिक रूप से बात नहीं करती हैं और जब करती हैं तो बहुत सावधानी बरतती हैं.
“मुझे उन चीज़ों के सपने नहीं दिखाए गए हैं और ख़ुशहाल ज़िंदगी से ज़्यादा चाहत रखना भी नहीं सिखाया गया है.”
लेकिन वो कहती हैं, “मैं बस इतना ही कहूंगी कि आचे में रानियां हुई हैं और अन्य इस्लामी रियासतों में भी रानियां हुई हैं.”
उनकी छोटी बहन गुस्ती कांजेंग रातु हायू खुलकर उन अभूतपूर्व शक्तियों के बारे में बात करती हैं जो राजकुमारी को दी गई हैं.
उन सभी को पढ़ने के लिए यूरोप, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया भेजा गया था और अब वो राजमहल वो ज़िम्मेदारियां संभाल रही हैं जो अभी तक पुरुषों के ही हिस्से आती रहीं थीं.
राजमहल में लड़कियों से भेदभाव नहीं

गुस्ती कांजेंग रातु हायू तेज़तर्रार अंग्रेज़ी बोलती हैं. वो कहती हैं, “मैं ख़ुशनसीब हूं कि मुझे ऐसे परिजन मिले जिन्होंने कभी ये नहीं कहा कि ये लड़कियों का काम नहीं है.”
“ये कुछ लोगों के गले नहीं उतरता लेकिन जब सुल्तान ऐसा कहते हैं तो सबको मानना ही पड़ता है.”
“ये महत्वपूर्ण है कि वो एक पुरुष होकर कह रहे हैं कि अब महिलाओं के पीछे रहने का समय नहीं रह गया है.”
हालांकि सुल्तान के भाई और बहनें इस बदलाव को लेकर सहज नहीं हैं. वो ग़ुस्से में हैं और जीबीपीएच प्राबुकुसुमो की तरह ही वो भी न सुल्तान से बात कर रहे हैं और न ही शाही आयोजनों में हिस्सा ले रहे हैं.

सुल्तान हमेंगकूबूवोनो दशम के तीन भाई हैं – जीबीपीएच जोयोकुसुमो, जीबीपीएच प्राबुकुसुमो और जीबीपीएच युदानिनग्रात.
जीबीपीएच प्राबुकुसुमो हंसते हुए कहते हैं, “हम एक इस्लामी शाही परिवार हैं और उपाधि सिर्फ़ पुरुषों के लिए ही है. हम उसे क्या सुल्तानी कहेंगे. ये असंभव है.”
वो कहते हैं कि ये सदियों से चली आ रही परंपरा के ख़िलाफ़ उठाया गया ख़तरनाक क़दम है. वो अपने भाई के परिवार पर सत्ता के भूखे और लालची होने का आरोप भी लगाते हैं.
वो कहते हैं, “उन्हें महल से निकाल दिया जाएगा, क्योंकि अब वो शाही परिवार का हिस्सा नहीं रह गए हैं.”
मैंने उनसे कहा कि इससे तो बहुत विवाद पैदा हो जाएगा. वो कहते हैं, “कोई बात नहीं है, बस ये याद रखना है कि ग़लत कौन है.”
दो रानियां?

लेकिन महल की चारदीवारी के बाहर कोई किसी का पक्ष लेने के लिए तैयार नहीं है. लोग कहते हैं कि वो शाही परिवार के फ़ैसले को स्वीकर करेंगे. लेकिन निष्ठावान अनुयायियों को ये चिंता है कि दक्षिणी सागर की महारानी क्या सोचेंगी?
जावा का शाही परिवार 16वीं सदी से शासन कर रहा है. ये अब इस्लाम को मानते हैं, लेकिन इनके मूल परंपराओं में रहस्यवाद, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और एनिमिस्म (जिसमें प्रकृति और प्रकृति से जुड़ी सभी वस्तुओं को महत्वपूर्ण माना जाता है) की प्राचीन परंपराएं घुली हुई हैं.
सुल्तान के भाई युदानिनग्रात कहते हैं, “सुल्तान और दक्षिण सागर की रानी लोरो किदूल के बीच ये क़सम है जो हमारे पवित्र ग्रंथ में भी लिखी है कि वो दोनों मिलकर शासन करेंगे और शांति बनाए रखेंगे.”
सुल्तान के नाख़ून और बालों को हर साल समुद्र की देवी को पेश किया जाता है. इन्हें मेरापी पर्वत के भीतर रहने वाले देवता सापू जगत को भी चढ़ाया जाता है जो इंडोनेशिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है. इसी ज्वालामुखी के साए में ये शहर बसा है.
ये चढ़ावा और ये आध्यात्मिक मान्यता ये सुनिश्चित करने के लिए है कि ज्वालामुखी, शाही महल और हिंद महासागर के बीच तारतम्य बना रहे और लोग सुरक्षित रहें.
शाही महल के बाहर गाइड का काम करने वाले आगुस सुवांतो पूछते हैं, “अगर दो रानियां हुईं तो क्या होगा? वो दोनों एक साथ कैसे रहेंगी. मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो पाएगा.”
शाही महल के गाइड बीमो गुरीत्नो से जब मैंने ये पूछा तो वो भी मुस्कुराते हुए कहने लगे कि ये एक अच्छा सवाल है.
वो कहते हैं, “सुल्तान की भूमिका दक्षिण सागर की देवी और ज्वालामुखी के देवता को संतुलन में रखने की है. कुछ लोग ज्वालामुखी के देवता को भूल जाते हैं. मुझे विश्वास है कि सुल्तान योग्याकार्ता के लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक समझदारी भरा फ़ैसला लेंगे.”
चुनौतीपूर्ण समय

योग्याकार्ता के सुल्तान शहर और आसपास के क्षेत्र के गवर्नर भी होते हैं और उन्हें इससे जुड़े निर्णय भी करने होते हैं.
जब इंडोनेशिया को आज़ादी मिली तो जकार्ता ने योग्याकार्ता के शाही परिवार की शक्तियों को बरक़रार रखा. शाही परिवार ने डच साम्राज्य के ख़िलाफ़ लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.
इंडोनेशिया में योग्यकार्ता एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां के लोग लोकतांत्रिक तरीके से अपना नेता नहीं चुनते हैं. 2010 में जब केंद्र सरकार ने कहा कि ये अब बदलना चाहिए तो लोग इस प्रस्ताव के विरोध में सड़कों पर उतर आए और केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा.
लेकिन सुल्तान हमेंगकूबूवोनो दशम एक विवादित आधुनिक नेता हैं जिनकी राजनीतिक और व्यापारिक महत्वाकांक्षाएं काफ़ी ज़्यादा हैं.
जब 2006 में मेरापी पर्वत का ज्वालामुखी फूटने लगा तो उन्होंने लोगों से शाही रखवालों की बजाए वैज्ञानिकों की बात पर ज़्यादा ध्यान देने के लिए कहा.
योग्याकार्ता के कुछ लोगों का आरोप है कि उन्होंने इस सांस्कृतिक शहर का बेतहाशा आधुनिकीकरण किया है और इस प्राचीन शहर को ऊंची इमारतों, शॉपिंग मॉलों और बिलबोर्डों से भर दिया है.
रहस्यवादी इस्लाम

जावा के अनूठे नरम और रहस्यवादी इस्लाम के लिए भी ये चुनौतीपूर्ण समय है. जावा में इन दिनों वहाबी इस्लाम मज़बूत हो रहा है. हालांकि यहां प्राचीन इस्लाम है और मूर्ति श्रद्धा और बहुदेववाद के संकेत मिलते हैं. वहाबी इस्लाम इसके ख़िलाफ़ है.
राजकुमारी गुस्ती हायू कहती हैं, “मैं शाही परिवार के सोशल मीडिया पेज संभालती हूं और इन रूढ़िवादी विचारों को भी देखती हूं.”
वो हंसते हुए कहती हैं, “लेकिन हमारे पास अपनी प्राचीन परंपराओं को अपने तरीके से जारी रखने के कारण हैं और ज़रूरी नहीं है कि ये ऐसे ही हों जैसा कि क़ुरान में बताया गया है, लेकिन हम भटकते नहीं हैं. हम अजीब उपासना विधियां नहीं अपनाते हैं.”
“ये एक इस्लामी राज्य है, ये बहुत धार्मिक दिखने या मध्य पूर्व के लोगों जैसा बनना नहीं है. इस्लाम हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में घुला हुआ है.”

वो कहती हैं कि पुराने शाही परिवार रहस्यों में घिरे रहने और आम लोगों की पहुंच से दूर रहने में गर्व महसूस करते थे. लेकिन अब शाही महल को आम लोगों के लिए खोलकर ही बचा जा सकता है.
“इसलिए हम युवा अपनी जावा संस्कृति को नहीं छोड़ते हैं क्योंकि अगर हने एक बार इसे खो दिया तो फिर ये लौटकर नहीं लाई जा सकेगी.”
जावा में हिजाब पहनने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. लेकिन शाही महल में किसी को सिर ढकने की अनुमति नहीं है.
रानी गुस्ती काजेंग रातु हेमास कहती हैं, “बहुत सी महिलाएं जो हिजाब पहनती हैं वो जब रस्म-रिवाज़ों के लिए महल में आती हैं तो अपने आप ही हिजाब उतार लेती हैं और जब वो बाहर जाती हैं तो फिर से पहन लेती हैं.”
“ये धार्मिक मुद्दा नहीं है. हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाना चाहते हैं और समाज इसे समझता है. सुल्तान सभी धर्मों से ऊपर हैं”
लेकिन आज के दौर के इंडोनेशिया में ये एक उकसावे वाला क़दम माना जाने लगा है.

हाल ही में इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी सुकमावती को ईशनिंदा के आरोप में माफ़ी मांगनी पड़ी थी. उन्होंने एक कविता में कह दिया था कि जावा की महिलाओं का जूड़ा इस्लामी चादर से ख़ूबसूरत है.
सुल्तान का विस्तृत परिवार रानी पर परंपराओं के ख़िलाफ़ विद्रोह का नेतृत्व करने का आरोप लगाता है. रानी राष्ट्रीय संसद में सीनेटर भी हैं.
वो कहती हैं कि उन्होंने अपनी बेटियों को स्वतंत्र रहना और ख़ुद को पुरुषों के बराबर समझना सिखाया है.
“मेरी बेटियां जब पंद्रह साल की थीं तब मैंने उन्हें बता दिया था कि उन्हें महल छोड़ना पड़ेगा और बाहर जाकर शिक्षा हासिल करनी होगी और फिर जो सीखा है उसे साथ लेकर लौटना होगा.”

जब मैंने उनसे पूछा कि क्या वो उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार कर रहीं थीं?
वो दृढ़ता से कहती हैं, “ये फ़ैसला सुल्तान के हाथ में है.”
“लेकिन हां, उत्तराधिकारी राजवंश का ही होना चाहिए, इसलिए आपको बहुत अंदर तक जाने की ज़रूरत नहीं है.”
वो कहती हैं, “बदलाव के समय में हमेशा ही सत्ता के लिए संघर्ष होता रहेगा.”