भारत में लगातार क्यों मंहगा हो रहा दूध, केंद्र सरकार चिंतित, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

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देश में दूध के बढ़ते दामों से चिंतित केंद्र सरकार के पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने दूध के उत्पादन, उपलब्धता और बढ़ती कीमतों के आकलन के लिए 3 जनवरी को सभी प्रमुख निजी और सरकारी क्षेत्र की डेयरियों की एक बैठक बुलाई है। प्याज के मामले मे किरकिरी होने के बाद सरकार दूध के मामले में सतर्क होकर उचित कदम उठाना चाहती है। पिछले दिनों सरकार ने दूध के दाम ₹3 प्रति लीटर बढ़ा दिए। यह पिछले 7 महीनों के भीतर दूध की कीमतों में दूसरी बढ़ोतरी है। फरवरी 2010 में दिल्ली में फुल क्रीम दूध के दाम ₹30 प्रति लीटर थे, जो मई 2014 में ₹48 प्रति लीटर हो गए। इस अवधि में 11% की औसत उपभोक्ता खाद्य महंगाई दर को देखते हुए यह बढ़ोतरी बहुत अधिक भी नहीं थी। मोदी सरकार के पहले 5 वर्षों के कार्यकाल में दिल्ली में फुल क्रीम दूध के दाम मई 2014 में ₹48 प्रति लीटर से बढ़कर मई 2019 में ₹54 प्रति लीटर पर पहुंचे। यानी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उपभोक्ताओं के लिए दूध के मौद्रिक दाम 2.5% प्रतिवर्ष की दर से बढ़े। इस अवधि में 3.3 प्रतिशत की औसत उपभोक्ता खाद्य महंगाई दर और दुग्ध उत्पादन की बढ़ती लागत को समायोजित करने के लिए दूध के दाम कम से कम 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की मामूली मौद्रिक दर से भी बढ़ाए जाते तो भी मई 2019 में दिल्ली में फुल क्रीम दूध के दाम लगभग ₹65 प्रति लीटर होते जबकि यह ₹56 प्रति लीटर ही है।

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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार नवंबर में उपभोक्ता खाद्य महंगाई दर 10% पर पहुंच गई जो पिछले 6 वर्षों का सबसे उच्चतम स्तर है। इसका मूल कारण खाद्य पदार्थों विशेषकर सब्जियों दूध आदि की महंगाई दर बढ़ना है। उल्लेखनीय है कि भारत 18.5 टन वार्षिक दूध उत्पादन के साथ विश्व में प्रथम स्थान पर है। हम दूध के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि दुग्ध उत्पादों को अन्य देशों के बाजारों में निर्यात करने की स्थिति में भी है। यदि दूध समेत पशुपालन से होने वाली संपूर्ण आमदनी का आकलन करें तो 28 लाख करोड़ रुपए की कृषि जीडीपी में दूध और पशुपालन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30% है। दूध के क्षेत्र में सक्रिय अमूल जैसी सहकारी संस्थाओं के कारण एक तरफ तो उपभोक्ताओं को दूध के बहुत अधिक दाम नहीं चुकाने पड़ते, वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ता द्वारा दूध पर खर्च किए गए ₹1 में से लगभग 75 पैसे किसानों तक पहुंचते हैं। दूध के दाम ₹10 प्रति लीटर कब मिलने के कारण देश का दुग्ध उत्पादक किसान लगभग एक लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष का घाटा सह रहे हैं।

एक अनुमान के अनुसार इस वक्त लगभग एक करोड़ बेसहारा पशु हैं, जो दुधारू पशुओं के हरे चारे को बड़ी मात्रा में चट कर जाते हैं। पशु आहार में काम आने वाली फसलों को भी ये नुकसान पहुंचाते हैं। इससे दुधारू पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता घट जाती है। इससे चारा मंहगा हो जाता है और दुग्ध उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। भारतीय चारागाह अनुसंधान संस्थान के अनुसार देश में हरे चारे की 64% और सूखे चारे की 24% कमी है। इन सबका असर अब दुग्ध उत्पादन और दूध की कीमतों में दिखने लगा है। दूध की कम कीमत मिलने से घाटे के कारण यदि किसान पशुपालन से विमुख हो गए तो पहले से ही संकट से जूझ रही कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में फंस जाएगी। देश की दूध की बढ़ती मांग की आपूर्ति और दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए किसानों को लाभकारी मूल्य देना होगा, अन्यथा दूध की कीमतें भी प्याज की राह पर आ सकती है। यानी पिछले 5 वर्षों में किसानों को दूध के उचित और लाभकारी मूल्य नहीं मिले। उल्टे हर साल मंहगाई और लागत बढ़ने के कारण दुग्ध उत्पादक किसानों को काफी घाटा झेलना पड़ा।

इस कारण सबसे पहले तो किसानों ने पशुओं की संख्या कम कर दी। दूसरा, दुग्ध उत्पादन की बढ़ती लागत को देखते हुए पशुओं को किसान उचित मात्रा में पोषक आहार नहीं खिला पाए।दुग्ध उत्पादन में घाटे के कारण बीमार पशुओं के इलाज और रखरखाव पर होने वाले खर्चे में भी कटौती करनी पड़ी। तीसरा, पिछले 5 वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र में बेसहारा पशुओं की संख्या बढ़ी है। पशु गणना 2012 के अनुसार देश में बेसहारा पशुओं की संख्या 53 लाख थी। चौथा, पिछले कुछ वर्षों में पशु आहार जैसे खल, चुरी, छिलका आदि के दाम भी काफी बढ़े हैं। जिसके कारण दुग्ध उत्पादन की लागत में काफी वृद्धि हुई है। पांचवा, इस वर्ष में विलंब से आए मानसून के कारण कई राज्यों में पहले तो सूखा पड़ा फिर बाद में अत्यधिक बारिश और बाढ़ की स्थिति बन गई जिस कारण भी चारे की उपलब्धता घटी है। छटा वर्ष 2019-20 का देश का कुल बजट27.86 लाख करोड़ रुपए हैं। इसमें से पशुपालन और डेयरी कार्य के बजट को पिछले वर्ष के 3,273 करोड से घटाकर इस वर्ष 2,932 करोड़ रुपए कर दिया गया।दुग्ध उत्पादन जैसी अति महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि का बजट कम करना उचित नहीं है। सातवा अक्टूबर से मार्च के बीच का समय दूध के अधिक उत्पादन का सीजन होता है। जिस दौरान दूध के दाम कम बढ़ते हैं। गर्मियों में दूध का उत्पादन कम हो जाता हैं और दाम बढ़ जाते हैं। इस बार सर्दियों में दाम बढ़ाने के बावजूद डेयरियों की दूध की खरीद में गिरावट आना अच्छा संकेत नहीं है।

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