अफगानिस्तान के एक युवक इमरान ने बताया कि तालिबान के कब्जे के बाद इमरान ने अपना मुल्क छोड़ दिया है। वहां उनकी करोड़ों की जमीन को छोड़कर अब वो दिल्ली में अपने लिए एक नई जमीन की तलाश में जुटे है। दरअसल 28 वर्षीय इमरान इलाज के सिलसिले में दिल्ली पहुंचे थे पर उन्हें कहा पता था कि यहां आते ही उनके वापिस जाने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। इमरान की ही तरह और भी कई लोग है जो जीने की उम्मीद में अपने देश से अपना सबकुछ छोड़कर पलायन कर चुके है।
इमरान ने बताया कि काबुल में उनकी 3 करोड़ की ऑटो पार्ट की शॉप है और उनके पास जमीन जायदाद भी अच्छी खासी है।उन्होंने बताया कि उनकी जिंदगी बहुत ही बढ़िया चल रही थी।लेकिन जब वो अफगानिस्तान से दिल्ली इलाज के लिए रवाना हुए थे तब उन्होंने सपने में भी नही सोचा था की उनका अपने वतन वापिस जाना नामुमकिन हो जायेगा।इमरान के पिता अमेरिका की फौज के साथ बारूद की सुरंग को डिस्क्लोज करने में जुटे हुए थे इसलिए तालिबानी उन्हें अपना दुश्मन मानते है।इसी वजह से उनके पास अपनी जमीन जायदाद छोड़कर पलायन करने के अलावा और कोई रास्ता नही है।जिससे उनकी और उनके परिवार की जान बच सके।
अफगानिस्तान से पलायन कर रहे लोगो को पहले से यहां मौजूद शरणार्थियों का भी पूरा सहयोग मिल रहा है।ऐसे में कुछ लोग मनी एक्सचेंज तो कुछ लोग और टिकटिंग का काम कर रहे है तो कुछ लोग ऐसे भी है जो रेंट पर गेस्ट हाउस संचालित कर रहे है।अफगानिस्तान से अलग अलग जगहों से नौजवान भारत पहुंच रहे है।और उन लोगो को चिंता सिर्फ यही है कि उनके पास न तो रहने के लिए जमीन है न ही खाने की कोई व्यवस्था। बैंक में जो उनके पैसे जमा है वो पैसे तक उनको नही मिल पा रहे है।इन सब मुश्किलों में अब लोग रोटी,अफगानी रोल,और बर्गर बनाकर बेचने का काम कर रहे है जिससे वो अपने लिए रहने और खाने का खर्च निकल सके।
यहां कम से कम एक हजार से ज्यादा लोगो को अपने गुजर बसर की चिंता खाए जा रही है।बबिता नाम की एक रेस्टोरेंट मालिक ने बताया कि तालिबान के दखल देने से उनके कारोबार में भी काफी नुकसान हुआ है।यह पहले से कई शरणार्थी मौजूद है जो पहले से ही परेशान है। उम्मीद है तो बस सरकार से की वो उन्हें कोई राहत दे।दिल्ली के कई इलाकों जैसे लाजपत नगर,तिलक नगर,मालवीय नगर,भोगल सहित नोएडा में अफगान के शरणार्थी रह रहे है।जिन्हे भविष्य की चिंता खाए जा रही है।
सेना में काम कर चुके एक शरणार्थी का कहना है कि वह जाने का कोई औचित्य नहीं बचा है हालत बद से बदतर हो चुके है। अब यहीं कुछ काम कर जिंदगी गुजारनी होगी।युवक ने बताया कि वो पिछले 6 साल से लाजपत नगर में रह रहा है।दूसरे शरणार्थियों की मदद करने में जुटे है।क्योंकि शरणार्थियों को यहां जमीन तो क्या एक सिम कार्ड तक लेने की परमिशन नही है।बस अपने गुजर बसर के लिए कोई व्यवसाय करने को मजबूर है।कुछ लोग एक ही रूम में जिसका किराया 8 से 10 हजार होता है। 3,4 एक साथ रहने को मजबूर है।